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Indi Reporter || India & Beyond: Stories Shaping Our World Sites > Indi Reporter (Hindi) > Blog > Uncategorized > मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के लिए रिश्ते प्रमुख है, राजपाट नहीं!
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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के लिए रिश्ते प्रमुख है, राजपाट नहीं!

Rajesh Kumawat
Last updated: March 10, 2025 3:40 pm
Rajesh Kumawat Published March 10, 2025
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राजेश कुमावत, indireporter.com

“मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने स्पष्ट कर दिया संपत्ति राजपाट नहीं रिश्ते प्रमुख है

जयपुर, अनुपम रंग थिएटर सोसाइटी की ओर से संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से रवींद्र मंच के मुख्य सभागार में दो दिवसीय भारतीय लोक नाट्य समारोह की शुरुआत हुई।
नाट्य समारोह के पहले दिन सोमवार को वरिष्ठ रंगकर्मी के. के.कोहली द्वारा लिखित एवं निर्देशित नाटक ” मर्यादा पुरुषोत्तम” के प्रभावी मंचन से दर्शक भाव विभोर हो गए। भगवान् मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन की घटना के प्रसंग पर आधारित नाटक में दिखाया गया कि जब राजा दशरथ ने श्रीराम के राजतिलक करने कि घोषणा कर दी, सारी अयोध्या में आनंद मंगल होने लगा। परन्तु कैकेयी गुस्सै से भर गई।
जब दशरथ कोप- भवन में पहुंचे और कैकेयी से उदासी का करण पूछा तो उसने राजा को स्मरण करवाया कि उन्होंने उसे दो वर दिए थे। आज वे वचन पूरे करने होंगे। भरत का राजतिलक हो तथा राम को 14 वर्ष का वनवास दिया जाए। दशरथ ने रानी को बहुत समझाया पर वह टस से मस नहीं हुई। अंत में अपने धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने बड़े ही दुखी मन से अपने प्रणप्यारे राम को वनवास भेजना स्वीकार किया। परन्तु राम से विलग होने के इस कठोर निर्णय से वे मूर्छा खाकर गिर पड़ते हैं।
जब भोर हुई तो राम पिताजी को प्रणाम करने आए और उनकी दशा देखकर वे कारण पूछने. लगे, तो कैकेयी द्वारा उन्हें वनवास जाने का आदेश मिला। वे थोड़े भी विचलित नहीं हुए तथा प्रसन्नता के साथ माता-पिता के आदेश की पालना करने हेतु तत्पर हो गए।
जब वनवास का आदेश सीता और लक्ष्मण को पता चला तो वे भी राम के साथ जाने को तत्पर हो गए। माता कौशल्या से आशीर्वाद पाकर वे पिता दशरथ के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे तो..साधारण वस्त्र पहने देखकर वे अत्यंत दुखी हो गए और फूट -फूट कर रोने लगे और अचेत हो गए।
इस नाटक की सारी कथा करुण रस से भरी है। नाटक “मर्यादा पुरुषोत्तम” आज की युवा पीढ़ी और दर्शकों के लिए अमूल्य संदेश देता है कि आज जहाँ वृद्धावस्था में माता-पिता कि सेवा करना तो दूर उन्हें बेघर कर भटकने और तड़प तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। जहाँ मर्यादा और रिश्तों को तार तार करने में शर्म नहीं आती। भूमि के छोटे से टुकड़े के लिए आज भाई भाई का रक्त बाहा देतें हैं। वहीं श्री राम ने माता-पिता के आदेश को मान कर उन्हें यह स्पष्ट कर दिया कि. उनके लिए सम्पति,राजपाट नहीं बल्कि प्रमुख है। अपने छोटे भाई भरत के लिए अयोध्या राज्य त्याग दिया । सौतेली माता कैकेयी की इच्छा का मान रखते हुए 14 वर्षों केलिए वन में रहे और अपने भाइयों के लिए आदर्श बने।
श्री राम सदैव सत्य,संयम,दया,करुणा,धर्म और मर्यादा के मार्ग पर चले इन्हीं गुणों के कारण ही उन्हें “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहा जाता है। श्री राम तो वह विशाल दर्पण हैं जिसमें देखकर हम अपने चरित्र को परिष्कृत कर सकते हैं।उनका जीवन चरित्र हमें सच्चे मार्ग पर चलने, चुनौतियों, मुश्किलों से लड़कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। उनके जीवन मूल्यों को अपना कर ही हम मानव जीवन को धन्य कर सकते हैं
नाटक में कलाकारों ने अपने गंभीर अभिनय से नाटक को सार्थक करते हुए दर्शकों को अंत तक बांधे रखा। गौरव त्रिपाठी, महेश महावर, दुर्गा प्रसाद मंडावरा, ऋतू सैनी, फाल्गुनी कुमारी, तनुषा नागरत, रमन पारीक, विनोद कुमार परीदवाल्,जाग्रति महावर, दुर्गाप्रसाद सैनी,कृति महावर, उमराव गुर्जर,विक्रम भगत आदि ने सशक्त अभिनय किया। सह निर्देशन जितेंद्र सिंह नरुका, महेश महावर का रहा। कल परंपरा नाट्य समिति की ओर से शाम 7 बजे दिलीप भट्ट के निर्देशन में तमाशा”गोपीचंद भृर्तहरि” की प्रस्तुति होगी।

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