जयपुर , विख्यात शिक्षाविद सुश्री हेमलता प्रभु की स्मृति कार्यक्रम में मुख्य कलाकार अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शास्त्रीय संगीत की श्रेष्ट गायिका – शुभा मुद्गल अपनी जादुई आवाज से सुधी श्रोताओ को मंत्रम मुक्त करने तीन मई को जयपुर आ रही है।
‘’आलम ए इश्क’’
सूफी और निर्गुण भक्ति परंपराओं की प्रेम की कविता का उत्सव जयपुर के जवाहर कला केंद्र मध्यवर्ती सभागार में तीन मई की शाम को शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम होगा।
शास्त्रीय संगीत की श्रेष्ट गायिका शुभा मुदगल, सूफी और निर्गुण भक्ति परंपराओं की “इश्क” कविता की प्रस्तुति करेंगी I तबले पर अनीश प्रधान व हारमोनियम पर सुधीर नायक का संगत रहेगा |
कलाकार का परिचय
शुभा मुदगल, विश्व विख्यात गायिका, संगीतकार पंडित रामाश्रेय झा, विनय चंद्र मोद्गल्य एंव पंडित वसंत ठक्कर की शिष्या रही है | उन्होंने अपनी विशेष गायन शैली पंडित जितेंद्र अभीशेकी से प्राप्त की एंव श्रीमती नैना देवी के साथ ठुमरी गायन का अभ्यास किया | वे सन 2000 में पद्मश्री से नवाज़ी गई ||
हेमलता प्रभु का परिचय
हेमलता प्रभु का जन्म 23 अप्रैल 1920 हुआ था | ये एक अजब इत्तेफ़ाक ही है कि उनका जन्म भी उनके प्रेरणा स्रोत अंग्रेज़ी के महान कवि, नाट्य लेखक व अभिनेता विलियम शेक्सपियर के जन्म दिन को ही हुआ | प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से इंगलिश लिट्रेचर में स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद वर्ष 1944 में उन्होंने जयपुर के महारानी गायत्री देवी (एमजीडी) स्कूल में अध्यापन का कार्य शुरू किया | 1945 में वे राजपुताना जयपुर के पहले महिला महाविद्यालय, महारानी कॉलेज से जुड़ीं | यहाँ रहते हुए उन्होंने कॉलेज प्रिंसिपल श्रीमती सावित्री भारतीया और साथी कृष्णा तर्वे के नेतृत्व में महिला शिक्षा की एक नई दृष्टि विकसित की | वर्ष 1965 में मिस प्रभु और मिस तर्वे ने जयपुर के पहले सरकार समर्थित प्राइवेट महाविद्यालय, कनोडिया महिला महाविद्यालय, जयपुर की स्थापना की | इसी महाविद्यालय की प्रिन्सिपल के पद से मिस प्रभु वर्ष 1982 में सेवानिवृत्त हुईं | वे राजस्थान राज्य की पहली महिला नाट्य निर्देशक थीं | वे उस नाट्य समूह की सदस्य बनीं जिसने जयपुर में एक जीवंत नाट्य आंदोलन विकसित किया | 40 से 80 के दशक में ये आंदोलन राजस्थान विश्वविद्यालय और अनेक महाविद्यालयों के साझे प्रयास से शुरू हुआ था | मिस प्रभु ने राजस्थान के महिला आंदोलन का नेतृत्व किया | वर्ष 1987 में सती विरोधी आंदोलन में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई | वर्ष 1983 से 1997 तक वे राजस्थान पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ ( पीयूसील) महासचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहीं | 1987 में वे बोध शिक्षा समिति जयपुर की सह संस्थापक बनीं | शहरी प्राथमिक शिक्षा की दिशा में ये एक अभिनव प्रयोग रहा है | मिस प्रभु का सारा जीवन कला, शिक्षा और नागरिकता को समर्पित रहा | वर्ष 2006 में उनका निधन हो गया |
जयपुर में मिस प्रभु के मित्र और छात्र हर साल स्मृति व्याख्यान आयोजित करके उन्हें याद करते हैं |