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शास्त्रीय गायिका पदमश्री शुभा मुद्गल के मधुर कंठों से बही प्रेम की रसधार, जवाहर कला केंद्र में हेमलता प्रभु स्मृति संगीत समारोह

Rajesh Kumawat
Last updated: May 3, 2024 3:53 pm
Rajesh Kumawat Published May 3, 2024
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राजेश कुमावत, इन्डी रिपोर्टर जयपुर

13वां सुश्री हेमलता प्रभु स्मृति कार्यक्रम  

जयपुर की पहली महिला नाट्य निर्देशिका को किया याद

आलम ए इश्क: पद्मश्री शुभा मुद्गल के नग़मों में बही प्रेम रसधार

जयपुर: जवाहर कला केन्द्र में शुक्रवार को 13वें हेमलता प्रभु स्मृति कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सुहानी शाम में प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका पद्मश्री शुभा मुद्गल की मधुर आवाज में सूफी और निर्गुण भक्ति परंपरा की प्रेम कविताओं से यह उत्सव सजा। जयपुर की पहली महिला नाट्य निर्देशक और कनोडिया महिला महाविद्यालय की सह-संस्थापक रहीं हेमलता प्रभु के 104वें जन्मदिवस के अवसर पर उनके मित्रजनों, परिवार, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल), राजस्थान बोध शिक्षा समिति और रोशानारा ट्रस्ट ने सुश्री प्रभु की स्मृति में कार्यक्रम आयोजित कर उनके प्रेरक जीवन से जयपुरवासियों को रूबरू करवाया।  

कंचन माथुर द्वारा सभी के स्वागत के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। उन्होंने हेमलता प्रभु के जीवन पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर पूर्व सिविल सेवा अधिकारी इंद्रजीत कुमार ने ‘मेरा कॉलेज और उसका मेरे जीवन पर प्रभाव’ विषय पर विचार रखे। इंद्रजीत कानोडिया कॉलेज से सन् 1982 में ग्रेजुएशन पूरी की थी। इस दौरान उन्हें हेमलता प्रभु का सानिध्य प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने वक्तव्य में हेमलता प्रभु के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कॉलेज में हेमलता मैडम के साथ बिताए दो साल के दौरान जो सीख मिली उसने जीवन को एक दिशा दी। वे बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं, सादगी की इस प्रतिमूर्ति ने कई जिंदगियों को नया आकार दिया। वे खुद को भूलकर बच्चों पर फोकस करती थीं। कुछ सिखाते समय लहजे में सख्ती थी तो बच्चों के प्रति मातृत्व भाव भी था। केवल पढ़ाना ही नहीं बच्चों को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनाना उनका लक्ष्य था। इसके लिए वे बच्चों से पढ़ाई के साथ-साथ रचनात्मक गतिविधियों यथा रंगमंच, कथक भी सीखने पर जोर देती थीं। इन्द्रजीत ने बताया कि प्रभु मैडम से कभी डर नहीं लगा वे प्यार से बच्चों को अनुशासन और पूछते रहने का महत्व बताती थी। इंद्रजीत ने एक किस्सा भी साझा किया। पिताजी की तबीयत खराब होने पर जब इंद्रजीत घर, अस्पताल और नाटक की रिहर्सल की जिम्मेदारी निभा रही थीं तो प्रभु मैडम खुद उनके लिए खाना बनाकर लाती थीं। ‘आज तक थके नहीं, क्योंकि किसी रेस में भागे नहीं, अपने लक्ष्य को याद रखा तो पाया कोई रेस थी ही नहीं।’ इंद्रजीत ने प्रभु मैडम से मिली सीख को उक्त कविता के जरिए जाहिर किया।

प्रेम से सराबोर गीतों से सजी शाम

इसके बाद शुरू हुई पद्मश्री शुभा मुद्गल की प्रस्तुति जिसका श्रोताओं को इंतजार था। आलम ए इश्क में सूफी और निर्गुण भक्ति की परंपराओं की प्रेम कविताओं की गूंज मध्यवर्ती में सुनाई दी। उन्होंने कबीर दास के पद से प्रस्तुति की शुरुआत की। ‘साहिब है रंगरेज, चुनरी मेरी रंगदारी’ गाकर उन्होंने गुरु की महिमा का बखान किया। इसके बाद उन्होंने संत मलूक दास जी की रचना ‘तेरा मैं दीदार दीवाना’ से ईश्वर का गुणगान किया। ए​क-एक कर उन्होंने विभिन्न संतों की रचनाएं गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रेम रसधार से सराबोर इस उत्सव में तबले पर अनीश प्रधान और हारमोनियम पर सुधीर नायक ने संगत की। पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव ने शिक्षा और कला जगत में हेमलता प्रभु के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने सभी कलाकारों और कला अनुरागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

हेमलता प्रभु का परिचय

कला, शिक्षा और समाज के प्रति अपना जीवन समर्पित करने वाली हेमलता प्रभु का जन्म 23 अप्रैल, 1920 को हुआ। उनके प्रेरणा स्रोत अंग्रेजी के महान कवि, नाट्य लेखक और अभिनेता विलियम शेक्सपियर का जन्मदिन भी 23 अप्रैल ही है। प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से इंग्लिश लिटरेचर में स्नातक करने के बाद हेमलता ने महारानी गायत्री देवी (एमजीडी) स्कूल में अध्यापन शुरू किया। 1945 में वे महारानी कॉलेज से जुड़ीं। वर्ष 1965 में प्रभु और कृष्णा तर्वे ने कनोडिया महिला महाविद्यालय की स्थापना की। कनोडिया के प्रिंसिपल के पद से प्रभु वर्ष 1982 में सेवानिवृत्त हुईं। 40 से 80 के दशक तक उन्होंने महिला नाट्य कर्मियों के लिए काम किया। प्रभु ने राजस्थान के महिला आंदोलन का नेतृत्व किया। वर्ष 1987 में सती विरोधी आंदोलन में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। वर्ष 1983 से 1997 तक वे राजस्थान पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ ( पीयूसील) महासचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहीं। 1987 में वे बोध शिक्षा समिति जयपुर की सह संस्थापक बनीं। वर्ष 2006 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा।

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