सतीश मीणा , indireporter
राजनीति के सफर के दौरान सभी वर्गों के लिए संघर्ष किया, जनहित में सैंकड़ों आंदोलन किए, साहस से लड़ा, बदले में पुलिस के हाथों अनगिनत मार खाईं। आज भी बादल घिरते हैं, तो समूचा बदन दर्द से कराह उठता है। मीसा बन्दी से लेकर जनता की खातिर दर्जनों बार जेल की सलाखों के पीछे रहा।
संघर्ष की इसी मजबूत नींव और सशक्त धरातल के बूते दौसा का उपचुनाव लड़ा। जनता के आगे संघर्ष की दास्तां रखी। घर घर जाकर वोटों की भीख भी मांगी। फिर भी कुछ लोगों जयचंद की तरह गद्दार निकले।
भितरघाती मेरे सीने में बाणों की तरह वर्षा कर देते तो मैं दर्द को सीने में दबा सारी बातों को दफन कर देता , लेकिन उन्होंने मेघनाथ बनकर मेरे लक्ष्मण जैसे भाई पर शक्ति का बाण चला डाला।
साढ़े चार दशक के संघर्ष से न तो हताश हूं और न ही निराश। पराजय ने मुझे सबक अवश्य सिखाया है लेकिन विचलित नहीं हूं। आगे भी संघर्ष के इसी पथ पर बढते रहने के लिए कृतसंकल्प हूं। गरीब, मजदूर, किसान और हरेक दुखिया की सेवा के व्रत को कभी नहीं छोड सकता परन्तु ह्रदय में एक पीड़ा अवश्य है। यह बहुत गहरी भी है और पल-प्रति-पल सताने वाली भी। जिस भाई ने परछाईं बनकर जीवन भर मेरा साथ दिया, मेरी हर पीड़ा का शमन किया, उऋण होने का मौका आया तो कुछ जयचंदों के कारण मैं उसके ऋण को चुका नहीं पाया।
मुझमें बस एक ही कमी है कि मैं चाटुकारिता नहीं करता और इसी प्रवृत्ति के चलते मैंने राजनीतिक जीवन में बहुत नुकसान उठाया है। स्वाभिमानी हूं। जनता की खातिर जान की बाजी लगा सकता हूं।
गैरों में कहां दम था, मुझे तो सदा ही अपनों ने ही मारा है : किरोड़ी लाल